प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 10)
जंगल के किनारे एक मध्यम आकार की काले रंग जर्जर हो चुकी इमारत थी, देखने से यह काफी पुरानी प्रतीत हो रही थी! बाहर से कई जगह टूट-फूट के निशान दिखाई दे रहे थे। खिड़कियों पर मकड़ियों के जाले लगे हुए थे, छत पर कई पंछियों के घोसलें बने हुए थे। सामने का मुख्य दरवाजा इस तरह बंद हो चुका था जैसे दीवार का ही एक हिस्सा बन चुका हो। मुख्य द्वार के आसपास देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई भूल-भटककर भी कभी इधर नही आया हुआ था, पर अगर कोई चाहता भी तो नही आ सकता था, बाहर चारों तरफ खूब ऊँची दीवारें थी और ठीक सामने खूब ऊँचा और मजबूत लोहे का गेट था, जिस में काफी मजबूत ताला लगा हुआ था, जिसपर लगे जंग के निशानो को देखने से पता चल रहा था कि वह स्थान वर्षों से खाली और बन्द पड़ा रहा होगा! मैदान की घास सूखी हुई थी, सुबह के मौसम के कारण यहां भी पंछियों का कलरव गूंज रहा था, कुछ चिड़िया छत पर बने ऊँचे स्तम्भों पर बैठी हुईं थीं। वातावरण में अजीब सी शांति पसरी हुई थी, हवाओं में कोई शोर न था। तभी उस इमारत के बैक डोर की ओर कच्ची सड़क के पास की जमीन खिसकने लगी, वहां पर करीब एक ट्रक तक के आसानी से अंदर जाने का सुरंगनुमा रास्ता बनता गया, उसी रास्ते से एक काली कार अंदर प्रविष्ट कर गयी। इमारत का पिछला हिस्सा जंगल की ओर था।
वह कार तेजी से अंदर चलती चली गयी, बाहर से इमारत जितना दिख रही थी अंदर उसके दस गुने के करीब का एक विशाल हॉल नजर आ रहा था, इसकी छत को कुछ कुछ दूरी पर मजबूत चौड़े लौहमिश्रित स्तम्भों द्वारा सहारा दिया गया था। बाहर से इमारत जितनी जर्जर नजर आ रही थी अंदर की दुनिया उतनी ही सजी-धजी हुई थी। चारों तरह महंगी गाड़ियां और ट्रक्स खड़े थे, दो-चार सीक्रेट रूम्स भी दिख रहे थे जो कंप्यूटराइज़ लॉक्ड थे! चारों तरफ सफेद लाइट्स लगी हुई थी, जिनसे वहां उजाला हो रहा था। प्रत्येक स्तम्भ पर एक छोटा कैमरा लगा हुआ था, हर एक स्तम्भ के पास दो-दो हथियारबंद नकाबपोश खड़े थे। वहां से थोड़ी दूर पर लंबी दाढ़ी वाला एक हुष्ट-पुष्ट व्यक्ति दिखाई दे रहा था। जिसके सम्पूर्ण जिस्म पर काला लिबास था, आँखों पर गहरे काले रंग के चश्मे, चेहरे पर विचित्र सी मुस्कान लिए वह उस सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसके ठीक पीछे पीछे दो हथियारबंद नकाबपोश खड़े थे।
उस काली कार को आगे बढ़ने का इशारा किया गया, वह कार उस दाढ़ीवाले व्यक्ति से कुछ ही दूरी पहले रुकी, उसमें से एक काफी ऊँचा, काले कपड़ो में लिपटा हुआ एक शख्स निकला, उसके सम्पूर्ण जिस्म में केवल आँखे ही थीं जिनपर कोई कपड़ा नही लिपटा हुआ था, मगर उसपर भी उसने भी ब्लैक गॉगल्स लगा रखे थे। उतरते ही वह पैर पटकते हुए उस लम्बी दाढ़ी वाले व्यक्ति के पास पहुँचा।
"ये तुम क्या कर रहे हो? ये तुम्हारे प्लान में तो नहीं था?" कार से उतरने वाला शख्स, लम्बी दाढ़ी वाले शख्स पर गुस्से से भड़कते हुए बोला।
"मेरा प्लान मैं बनाता हूँ! मुझे क्या करना है ये मत सिखाओ। बस इतना जान लो इससे भी तुम्हारा ही फायदा हो रहा है।" दाढ़ी वाले व्यक्ति ने शांत स्वर में कहा।
"पर तुमने वादा किया था कि तुम बस बच्चों को किडनैप करोगे और बाद में उन्हें छोड़ दोगे, उन्हें मारना हमारे प्लान में नहीं था।" वह व्यक्ति अब भी भड़क रहा था।
"नादान मत बनो! इससे कितने फायदे हो रहें हैं उन्हें भी एक नज़र गौर से देखो।" दाढ़ी वाला शख्स ने अब भी शांत स्वर में उत्तर दिया।
"मैंने तुम्हें यह जगह मुहैया कराई, यहाँ के लोकल और पुलिस से बचाया। तुम्हें, तुम्हारे जरूरत का सामान दिया, हथियारों के साथ आदमी भी मुहैया कराया। अब तुम अपनी मर्ज़ी नहीं चला सकते!" वह शख्स गुस्से से फट पड़ा था।
"हम अपना वादा ही निभा रहे थे। मगर हमारा एक महत्वपूर्ण सदस्य पकड़ा और मारा गया, यह काम तुम्हारी पुलिस ने किया था, जिसको रोके रखने का वादा तुमने मुझसे किया था। अब उस पुलिसिये को दोज़ख दिखाना ही हमारा मकसद है, उसे अब तिल-तिलकर मरना होगा यही हमारा इंतकाम है।" उस दाढ़ीवाले शख्स के लहज़े में अचानक परिवर्तन हुआ, उसकी आंखों में क्रोध उबलने लगा, उसने एक एक शब्द को चबा - चबाकर कहा।
"इसके लिए तुम हमारी आवाम को तंग नहीं कर सकते ब्लैंक!" वह व्यक्ति उसके कठोर लहज़े से सहम गया।
"हमारे सामने समाजसेवक बनने का नाटक मत करो! अगर इतने बड़े समाजसेवक होते तो ब्लैंक के पास नहीं आते! अब मैं जो कर रहा हूँ करने दो अन्यथा तुम्हारी असलियत तुम्हारे आवाम को दिखा दी जाएगी।" ब्लैंक नामक उस दाढ़ीवाले शख्स ने कठोर लहज़े में कहा। वह शख्स बुरी तरह सहम गया, उसके मुख से बोल नहीं फूटे।
"वैसे भी इससे तुम्हारा ही फायदा हुआ है, वो इंस्पेक्टर संस्पेंड हो गया है और उसपर उन बच्चों के मौत का इल्जाम लग चुका है, अब सरकार तुम्हारे आदमियों को लाखों रुपये भी देगी! हाहाहाहा…!" कहते हुए ब्लैंक ने जोरदार ठहाका गया, अगले ही पल वह व्यक्ति भी उस ठहाके में शामिल हो गया। "बाकी के बच्चों को किसी चौराहें पर फेंक दिया जाएगा। उम्मीद है तुम अब मेरी बातों का बुरा नही मानोगे। पुलिस को रोकना तुम्हारा काम है, अगर वो मेरे रास्ते में आयी तो फिर आगे जो भी मरेगा उसकी मौत का जिम्मेदार मैं नहीं होऊंगा।" ब्लैंक ने शैतानी ठहाका लगाते हुए कहा, वह शख्स उसके शैतानी इरादों को भांपकर ही सहम गया। वह जल्दी से अपनी कार की ओर भागा, अगले ही पल गेट खुलने की आवाज हुई, सुरंग बनी और कार सुरंग में प्रविष्ट हुई अगले ही पल वह सुरंग बन्द होने लगी। वह व्यक्ति वहां से चला गया मगर ब्लैंक का ठहाका अब भी नही थमा था।
"तुम तो अपनी लालच के जाल में फंसे एक मोहरे हो रावत! जो मुझे मेरे मकसद तक ले जाने का एक जरिया मात्र है। मेरी चाल समझ सको इतने बड़े नही हुए हो तुम!" ब्लैंक फुसफुसाया, उसकी शैतानी आँखों में विचित्र से मुस्कान थी।
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अरुण अब भी ट्रक के ऊपर लेटा हुआ था, ट्रक पहाड़ियों की सर्पिली सड़क से उतरकर लगभग मैदानी रास्ते में आ चुकी थी। ट्रक तेजी से आगे बढ़ रहा था, अरुण जबड़े भींचे हुए दोनों हाथो से कसकर पकड़े हुए था। अचानक ट्रक की गति कम होने लगी, सामने थोड़ी दूर पर एक छोटा ढाबा नजर आया, शायद ड्राइवर यहां कुछ खाने पीने के इरादे से रुक रहा था। उसने ट्रक को सड़क के एक किनारे लगा दिया, ट्रक के रुकते ही ड्राइवर और उसका साथी ढाबे पर जाकर बैठ गए। अरुण अपने सिर पर काली टोपी पहने छिपते-छिपाते उस ट्रक से उतरा। उसका जख्म अब तक हरा था, इसका इलाज करवाना जरूरी थी मगर अरुण फिलहाल ऐसे किसी मूड में नही था, वह पहाड़ियों की ओर बढ़ता चला गया मगर कुछ कदम चलने के बाद ही ठहर गया।
"इन लोगों ने मेरे ऊपर इल्ज़ाम तक लगा दिए, अब तो पक्का यकीन हो गया कोई बहुत गहरी जाल बुन रहा है, अरुण उसके इस जाल को बिखेर देगा।" गुस्से से उसकी मुट्ठियां भींच गयी।
"मुझे इसकी अच्छे से जाँच करनी ही होगी। मगर यहां तो कोई इक्विपमेंट अवेलेबल ही नही होगा, क्या करूँ मैं?" अरुण उसी नीडल को गौर से देखा। उसे इतना श्योर था कि यदि उन बच्चों के भीतर जो कुछ भी डाला गया उसमें इस नीडल का प्रयोग किया गया होगा तो इसमें उस पदार्थ के अंश जरूर मौजूद होंगे। वह बहुत बुरी तरह उलझा हुआ था, माथे पर काली पड़ रही रेखाएं इस बात की गवाही दे रही थी।
"यहां से मेरे पास दो ही तरफ़ जाने का रास्ता है, या तो मसूरी जाकर छिप जाऊं और क्या हुआ इसका पता लगाने की कोशिश करूँ या फिर अपने ही स्टाइल में देहरादून वापस जाकर अपने आप को बेगुनाह साबित करूँ।" अरुण ने अपनी उलझन को लगभग सीमित कर लिया था।
"मुझे अपने आप को बेगुनाह साबित करना ही होगा ताकि उन मासूमों को इंसाफ मिल सके। जो भी इन सबके पीछे है जल्द ही वो जमीन के नीचे होगा, अब उसके हरेक षड्यंत्र को नाकाम कर दूंगा मैं!" अरुण पर उसकी उत्तेजना हावी होने लगी।
"ओह! मुझे बहुत भूख लग रही है मुझे कुछ खा लेना चाहिए!" अरुण पिछले दिन सुबह का खाया हुआ था, खून अधिक बह जाने के कारण उसे बहुत अधिक भूख लग रही थी। वह ढाबे की ओर बढ़ा, अब तक वह ट्रक चला गया था, वहां एक दूसरा ट्रक खड़ा था जो देहरादून की ओर जाने वाला था। वह ढाबे के सामने पहुँचा, अचानक उसके चेहरे के भाव बदलने लगे, निश्चित ही उसके मन में भी कोई द्वंद्व चल ही रहा था।
"नहीं! मैं नहीं खा सकता। मुझे नहीं पता कि मैं क्या कर रहा हूँ, ये उलझन आसानी से नही सुलझने वाली है पर मुझे सबसे पहले खुद को सही साबित कराना है, और फिर …!" उसकी आँखों में एक बार लौ धधकने लगीं। उसने ट्रक को गौर से देखा और उसपर चढ़ गया।
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शाम का समय!
देहरादून के सभी चैक पोस्ट्स पर कड़ा पहरा था, आदित्य और मेघना अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पूरी ताकत के साथ डटे हुए थे, मेघना काफी उलझन में नजर आ रही थी, वह बस बार-बार अपने चेहरे पर आती जा रही लटों को सुलझाने में लगी हुई थी, वह घटना घटने के दौरान भले ही वहां नही थी मगर उसने उन मासूमों का हाल देखा हुआ था।
"अरुण ने पहले उन बच्चों को बचाया, हेडक्वार्टर लेकर आया, फिर घर भेजा फिर पहाड़ी पर बुलाया! तो उन्हें हेडक्वार्टर लाने के बाद उसे ऐसा क्या मिला जो पहाड़ी पर बुलाना पड़ा वो चाहता तो घर पर भी टेस्टिंग हो सकती थी मगर उसका वहां बुलाना इस बात को पक्का करता है कि उसे एक हद तक इस बात पर यकीन था कि बच्चों में बम फिट है। मगर उसे ये बात इतनी देर से समझ क्यों आयी?" मेघना का दिमाग भी तेजी से सभी घटनाओं का आंकलन करने लगा।
"पहले यहां बच्चे किडनैप हुए जिनमें आधे से अधिक या शायद सभी बच्चे दिव्यांग हैं। फिर यहां अरुण आया उसने केस सॉल्व करने की कोशिश की मगर अब वह सस्पेंड हो चुका है, हम जानते हैं उसने कोई गलती नहीं किया है मगर फिर भी हम कुछ नही कर सकते कुछ भी नही!" मेघना के विचारों पर अचानक ही नकारात्मक दबाव बढ़ने लगा, वैसे भी दिनभर मीडिया के बेकार के सवालों का यह ही जवाब देते देते अब वह बुरी तरह थक चुकी थी।
"एक मिनट! उसने आते ही जिस लड़के को मार डाला था, उसके हाथ पर ये निशान बना हुआ था।" मेघना अपने मोबाइल फ़ोन में उस इमेज को देखने लगी। वे दो बड़े सर्कल बने हुए थे, उनके बीच एक स्टार और उसमें फुंफकारता हुआ नाग!
"मुझे जब आदित्य यह दिखाया था तब मुझे लगा था कि मैंने कहीं और भी इसको देखा हुआ है, मगर कहाँ? मैं इसे ढूंढने भी गयी थी मगर मैं कुछ भी पता नही कर सकी थी, और फिर मुझे उस केस पर काम करने का मौका नही मिला, जाने क्यों ऐसा लग रहा है जैसे इन सब में ये चिन्ह भी कोई खास रोल अदा कर रहा है, मुझे जल्दी से ये याद करना ही होगा, अगर मैंने इसे देखा है तो कहाँ देखा होगा।" मेघना अपने सिर से कैप निकालकर वहीं एक बेंच पर बैठ गयी, वह अपने माथे पर बहुत जोर दे रही थी मगर अफसोस उसे कुछ याद नहीं आ रहा था।
"मैडम! अब आपको थोड़ा रेस्ट कर लेना चाहिए!" एक अधेड़ उम्र के कॉन्स्टेबल ने कहा।
"नहीं! जब तक मैं इन मासूमों के हत्यारे को नही पकड़ लेती मैं रेस्ट नहीं करूंगी।" मेघना ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया।
"ठीक है मैडम! जैसा आप उचित समझें। आदित्य सर आपसे मिलने आये हैं।" सामने रुक रही पुलिस की गाड़ी को देखकर वह कॉन्स्टेबल बोला और वहां से निकल गया।
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"तुम्हारे पास इतनी अच्छी गाड़ी कैसे उल्लू?" अपने सामने ब्लैक कलर की चमक रही ऑडी को देखकर पियूषा ने अनि को घूरते हुए सवाल दागा।
"म..मेरे पास कहाँ है? वो तो तुम्हारे पास है, मुझसे तो इतनी दूर है भला।" अनि ने सामान के बैग्स नीचे रखते हुए अपने हाथों को नचाया।
"जब तुम्हारे पास पहले से इतनी अच्छी गाड़ी थी तो हम तब से टैक्सी में क्या कर रहे थे?" अब पियूषा, अनि पर भड़कने लगी।
"वो दरअसल बात ये है न कि हम तो उड़ते हुए आ गए मगर इस बिचारी को जमीन के रास्ते आना पड़ा, इसका ड्राइवर बहुत सुस्त था जिसके कारण मेरी प्यारी 'ऑर्न' भी आलसी हो गयी।
"क्या? तुमने इसका भी नाम रख दिया? तुम्हें कोई और नाम नही मिला क्या जो ऐसा नाम रख दिया! ऑर्न? क्या बकवास नाम है यार!" पियूषा भड़कते हुए उसकी ओर बढ़ी।
"गाड़ी तो शानदार है न! चलो पधारों!" डिक्की में सामान रखने के बाद अनि डोर ओपन करता हुआ बोला।
"मुझे तो समझ नही आता कि तुम्हारे पास इतनी महंगी गाड़ी आयी कहा से! कोई डाका डाला है क्या?" पियूषा ने बैठते हुए उसे घूरा।
"हां! डाला है न, उसके दिल पे डाका। बताया था ना वो कितनी अमीर है, उसके घर पैसे के दो पेड़ लगे हुए है, जब उसको जितना भी चाहिए पत्ते तोड़ लेती है…!" अनि ने अपनी बकबक फिर स्टार्ट कर दिया। पियूषा उसे काट खाने वाली नजरों से देखती रही। "एक दिन उसने कहा कि बन जाओ मेरे दिल के सरताज, मैंने कहा देखेंगे महाराज..फिर रहा न कोई राज, जब मैंने किया इकरार फिर उसके पापा ने थमा दिया मुझे ये कार। यू नो! दहेज के तौर पर..!"
"ओ प्लीज! अभी नहीं। मुझे अंकल से मिलना है जल्दी।" पियूषा बिफरते हुए बोली।
"ठीक है तो दुबारा बेकार के सवाल मत पूछना! रीदम अच्छी थी ना, बीट पर बैठ रही थी।"
"तू मेरा सिर मत खा समझा! हमेशा बेकार की बात करने वाले को मेरा सवाल बेकार का लग रहा है।"
"तूने मुझसे वो रट्टा मरवाया था उसका क्या? मुझ जैसे बालब्रह्मचारी को प्रेम के बारे में बोलवाकर मुझपर जुल्म किया था, भूल गयी?"
"और कुछ याद हो तो बोल ले?" पियूषा गुस्से से बोली।
"ओले, ओले ओले, मेला बच्चा!" अनि ने प्यार से पुचकारा।
"अब अगर मेरा वादा टूट जाये तो मुझे दोष न देना।" पियूषा ने मुँह बनाया।
"नहीं टूटेगा! मुझे यकीन है पूरा।" कहते हुए अनि ने गाड़ी स्टार्ट कर दिया। ऑडी मसूरी की सड़कों पर सरपट दौड़ते हुए देहरादून की ओर बढ़ी।
क्रमशः…...
Seema Priyadarshini sahay
11-Nov-2021 06:18 PM
बहुत खूबसूरत ,रोचक भाग
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